कर्म ही सच्चा धर्म है (Karm hi saccha dharm hai)
गया नगर का अलख नामक एक धर्मात्मा था। वह धर्म परायण होकर ईश्वर का नाम जपने और लोगों को धर्म के मार्ग पर चलाने के लिए चारों दिशाओं में भ्रमण करता रहता। जहाँ भी जाता, वहाँ धर्मसभा आयोजित करता और लोगों को ईश्वर का स्मरण करने की प्रेरणा देता। धीरे-धीरे उसके अनेक अनुयायी बन गए।
एक बार वह “चनद” नामक गाँव पहुँचा। वहाँ लोगों ने बड़े हर्ष और उत्साह के साथ उसका स्वागत किया। यह गाँव सम्पन्न था, यहाँ बड़े-बड़े सेठ और व्यापारी रहते थे। गाँव के मुखिया ने प्रस्ताव रखा- “धर्मात्मा जी प्रत्येक घर में दो-दो दिन विश्राम करेंगे और सबको धर्मोपदेश देंगे।”
गाँववासी सहर्ष राज़ी हो गए।
धर्मात्मा जी ने सभी का आतिथ्य स्वीकार किया। अंत में वह समद नामक किसान के घर पहुँचे। किसान ने पूरे आदर-सत्कार से उनका स्वागत किया, भोजन कराया, रहने का प्रबंध किया।
लेकिन दो दिन बीत जाने पर धर्मात्मा क्रोधित हो उठे। बोले-
“अरे मूर्ख! मैं दो दिन से तेरे घर ठहरा हूँ। न तुझे ईश्वर का नाम जपते देखा, न स्मरण करते। तेरे पास मेरे लिए समय ही नहीं है। क्या तुझे धर्म-बुद्धि नहीं है? तू तो नरक में जाएगा।”
किसान घबराकर विनम्र स्वर में बोला-
“महाराज, क्या अनर्थ हो गया? मुझ पर कृपा कीजिए।”
धर्मात्मा बोले-
“तू कौन सा धर्म-कर्म करता है? मैं धर्म की राह दिखाता हूँ, मेरे अनुयायी बन जा, तभी तेरा उद्धार होगा।”
किसान ने शांत भाव से उत्तर दिया-
“महाराज! मैं सबकुछ छोड़कर आपके साथ नहीं जा सकता। लेकिन इतना कह सकता हूँ कि मैं भी धर्म (dharm) और कर्म (Karm) करता हूँ।”
धर्मात्मा क्रोध से बोले—
“अरे मूर्ख! कैसा धर्म? बतला।”
किसान ने हाथ जोड़कर कहा-
“महाराज, मेरी दिनचर्या सुन लीजिए।
सुबह उठते ही मैं सबसे पहले गायों को चारा खिलाता हूँ। फिर खेतों में जाकर मेहनत करता हूँ। बीज डालते समय ईश्वर को स्मरण करता हूँ-‘हे प्रभु! ऐसी फसल देना कि संसार का कोई भी जीव भूखा न रहे।’
शाम को लौटकर पुनः गौ-सेवा करता हूँ। यही मेरा धर्म और यही मेरा कर्म है।”
धर्मात्मा ने कहा-
“यह तो तेरा कर्म है, धर्म कहाँ है इसमें?”
किसान मुस्कुराकर बोला-
“महाराज, संसार का सबसे बड़ा दानी किसान होता है। वह केवल अपने लिए नहीं, संपूर्ण जीव-जगत के लिए अन्न उगाता है।
बीज बोने से लेकर फसल काटने तक किसान का श्रम ही करोड़ों जीवों का पालन करता है-चाहे चींटी हो या हाथी। यदि कभी फसल न हो तो किसान दुगुना परिश्रम करता है कि कोई भी प्राणी भूखा न रह जाए।
आप अपने लिए धर्म (dharm) करते हैं, लेकिन मैं अपने कर्म से समस्त सृष्टि का धर्म निभाता हूँ।”
किसान की बात सुनकर धर्मात्मा का क्रोध शांत हो गया। उनकी आँखों में आश्चर्य और श्रद्धा उतर आई। वे बोले-
“हे किसान! आज मैंने सच्चा धर्म समझा। वास्तव में तू ही सबसे बड़ा सेवक है। कर्म ही सच्चा धर्म है और संसार का पालन करने वाला सबसे बड़ा धर्मात्मा किसान है।”
शिक्षा |कर्म ही सच्चा धर्म है (Karm hi saccha dharm hai)
कर्म (Karm) ही धर्म (dharm) है। केवल नाम जपने या उपदेश देने से नहीं, बल्कि दूसरों की सेवा और भलाई के काम से ही इंसान सच्चा धर्मात्मा बनता है। संसार का सबसे बड़ा सेवक किसान है, क्योंकि उसका कर्म संपूर्ण सृष्टि का पालन करता है।
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