अधूरा सपना (Adhura Sapna)
एक सपना था उस मंज़िल को पाने का,
किस्मत के बंद कमरों में डर था खो जाने का।
हर हालात में इच्छा थी उसे पाने की,
उम्र गुजर गई बस सपना जताने की।
ना हार मानी, ना खुद को थकने दिया,
बस उम्मीदों के सहारे हर मोड़ पर चलने दिया।
लोग हंसे, कहा – छोड़ दो अब ये जुनून,
पर दिल में हर दिन वो सपना बना रहा एक सून।
रास्तों में कांटे थे, चुभन भी गहरी थी,
पर आंखों में तस्वीर अब भी वही सुनहरी थी।
कई बार खुद से ही हो गया था रूठ,
फिर भी अंदर कहीं जिंदा था वो छूटा हुआ सूत्र।
अब जब पीछे मुड़कर देखता हूँ,
उस अधूरे ख्वाब की चमक आंखों में झलकता हूँ।
शायद मंज़िल नसीब न हो,
पर उस राह की आगाज़ ही मेरी जीत हो।
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